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तेरा मेरा वादा

तेरा मेरा वादा


तुमने दिया था जो मुझेआखिरी बार गुलाब।
सहेज रखा  है आजतक,  इसे  अपने पास।

इसे अपने पास रखना,और मुझे भूल जाना।
कहते हुए तेरी आंखे बरबस छलछला आना।

एक  वादा    तेरा  था और  एक  मेरा भी।
वक्त के साथ - साथ रूठ गई तकदीर भी।

तेरी निशानी पास रखूं और तुझे भूल जाऊं।
तूही बता रिवाज़ ए इश़्क भला कैसे निभाऊं।

तेरे साथ बिताए वो, चन्द हसीन लम्हें।
ग़मे फुरकत मेंं तेरी बहुत याद आती है।

दिन तो बीत जाता है तमाम उलझनों मेंं।
रात की तनहाई , बहुत अगन जलाती है।

तेरे अहसासों को ,जी लेती हूँ इसके साथ।
कभी ख़बर लोगे मेरी, आज भी है ये आस।

इसे छूकर तेरे स्पर्श की ,खुशी महसूस करूँ।
ये तेरा आखिरी तोहफ़ा , इसे कैसे दूर करूँ।

अब तो हालात भी ,इस कदर बदल गए हैं।
अपने दायरों मे इस हद तक सिमट गए हैं।

कि आवाज़ भी सुनाई न दे,इक दूज़े को।
तुम और मैं अपने अपने,हम मेंं रम गए हैं।

आज भी  संजोकर रखा है ये नाजुक गुलाब।

तेरे मेरे टूटे हुए वादे की  कहानी  है ये गुलाब।

सबक मिल गया कि  वादा न करना अब कभी।
अक्सर उसपर झूठे होने का तोहमत लगा देते हैं।


स्नेहलता पाण्डेय "स्नेह"

प्रतियोगिता

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4 Comments

Seema Priyadarshini sahay

13-Dec-2021 06:20 PM

बहुत खूबसूरत

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Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI

12-Dec-2021 12:17 PM

Wah wah

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Ravi Goyal

12-Dec-2021 07:50 AM

वाह बहुत खूबसूरत रचना 👌👌

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